UPI Payment New Rules – अगर आप भी हर छोटी-बड़ी खरीदारी के लिए फोन निकालकर UPI से पेमेंट कर देते हैं, तो अब थोड़ा सतर्क हो जाइए। क्योंकि सरकार एक नया नियम लाने की तैयारी में है, जिसके तहत 3000 रुपये से ज्यादा के UPI पेमेंट पर चार्ज लग सकता है। ये नया नियम सिर्फ बड़े ट्रांजैक्शन पर लागू होगा और इसका मकसद डिजिटल पेमेंट सिस्टम को लंबे समय तक टिकाऊ बनाए रखना है।
क्या है नया प्रस्ताव?
सरकार इस समय एक ऐसे प्रस्ताव पर काम कर रही है जिसमें कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति 3000 रुपये से ज्यादा का UPI ट्रांजैक्शन करता है, तो उस पर MDR यानी Merchant Discount Rate के नाम से चार्ज लिया जा सकता है। ये चार्ज सीधे ग्राहक से नहीं बल्कि व्यापारी से लिया जाएगा, लेकिन इसका असर अप्रत्यक्ष रूप से आम उपभोक्ता की जेब पर भी पड़ सकता है।
MDR क्यों जरूरी माना जा रहा है?
दरअसल, जब से डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने साल 2020 में जीरो MDR पॉलिसी लागू की है, तब से बैंकों और फिनटेक कंपनियों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। बैंकों को हर UPI ट्रांजैक्शन को प्रोसेस करने के लिए तकनीक, सर्वर और कर्मचारियों की मदद लेनी पड़ती है, जिसका खर्च उन्हें खुद उठाना पड़ रहा है।
अब जबकि UPI ट्रांजैक्शन की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है और उसका बड़ा हिस्सा 3000 रुपये से ऊपर के लेनदेन का है, ऐसे में बैंकों और सर्विस प्रोवाइडर्स ने सरकार से मांग की है कि उन्हें कुछ राहत दी जाए।
कितना लगेगा चार्ज?
पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) की सिफारिश है कि बड़े मर्चेंट ट्रांजैक्शन पर 0.3 प्रतिशत तक MDR लगाया जाए। मतलब अगर आपने किसी दुकान या ऐप पर 5000 रुपये का पेमेंट किया है, तो व्यापारी से 15 रुपये चार्ज लिया जा सकता है।
फिलहाल डेबिट और क्रेडिट कार्ड पर 0.9 प्रतिशत से लेकर 2 प्रतिशत तक MDR लगता है। RuPay कार्ड को कुछ मामलों में इसमें छूट भी मिलती है।
किन ट्रांजैक्शन पर पड़ेगा असर?
ये चार्ज सिर्फ उन्हीं ट्रांजैक्शन पर लागू हो सकता है जो 3000 रुपये से ज्यादा के होंगे। जैसे अगर आप किसी इलेक्ट्रॉनिक आइटम की शॉपिंग कर रहे हैं, रेस्टोरेंट में बिल ज्यादा आया है या किसी बड़ी सर्विस का पेमेंट कर रहे हैं, तो ये चार्ज लग सकता है। छोटे ट्रांजैक्शन जैसे दूध, सब्जी, किराने की खरीदारी या लोकल राइड में UPI से पेमेंट करते हैं, तो चिंता की कोई बात नहीं है।
सरकार की सोच क्या है?
सरकार का मानना है कि देश में मुफ्त में चल रहे डिजिटल पेमेंट सिस्टम को लंबा टिकाए रखना संभव नहीं है। जब करोड़ों लोग एक साथ ट्रांजैक्शन करते हैं, तो उसे मैनेज करने के लिए टेक्नोलॉजी में लगातार निवेश की जरूरत होती है। सर्वर अपग्रेड, साइबर सुरक्षा, और डाटा मैनेजमेंट जैसे कामों पर भारी खर्च आता है।
इसलिए अब सरकार डिजिटल पेमेंट को एक स्थायी और आत्मनिर्भर मॉडल में बदलना चाहती है, जिसमें सेवा देने वालों को भी कुछ मुनाफा मिले।
क्या बातचीत हो चुकी है?
पिछले दिनों इस विषय पर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), वित्त मंत्रालय और फाइनेंशियल सर्विसेज विभाग के बीच बैठकों का दौर चला है। इसके अलावा बैंकों, फिनटेक कंपनियों और राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) से भी इस पर चर्चा हुई है। माना जा रहा है कि अगले 1-2 महीनों में इस पर अंतिम फैसला लिया जा सकता है।
ग्राहकों पर क्या असर होगा?
अगर ये पॉलिसी लागू होती है, तो हो सकता है कि कुछ व्यापारी UPI पेमेंट लेने में हिचकने लगें या फिर चार्ज का बोझ ग्राहक पर डालें। हालांकि सरकार कोशिश करेगी कि ग्राहकों को सीधा नुकसान न हो, लेकिन परोक्ष रूप से चीजों के दाम पर असर पड़ सकता है।
क्या करना चाहिए आम UPI यूजर को?
अभी के लिए घबराने की जरूरत नहीं है। ये सिर्फ एक प्रस्ताव है और इसे लेकर अभी आखिरी फैसला नहीं हुआ है। लेकिन अगर आप अक्सर बड़े अमाउंट का पेमेंट UPI से करते हैं, तो आने वाले समय में आपको थोड़ा ध्यान रखना होगा।
कुछ टिप्स:
- जरूरत हो तभी UPI से बड़ा अमाउंट ट्रांसफर करें
- डेबिट या क्रेडिट कार्ड का विकल्प भी रखें
- ऑफर्स और कैशबैक स्कीम्स का फायदा उठाएं
- अपने खर्चों का हिसाब रखें और पेमेंट ऑप्शन में तुलना करें
UPI ने भारत को डिजिटल पेमेंट में दुनिया से आगे खड़ा कर दिया है। लेकिन अब समय है कि इसे एक मजबूत और टिकाऊ सिस्टम बनाया जाए। सरकार जो भी फैसला लेगी, वो आम लोगों और पेमेंट कंपनियों के बीच संतुलन बनाकर ही लिया जाएगा। तब तक आप अपने UPI इस्तेमाल की आदतों पर थोड़ा ध्यान देना शुरू कर दें।