Daughter Property Rights – भारत में बेटियों के संपत्ति अधिकार को लेकर लंबे वक्त से बहस चलती रही है। कई बार कोर्ट ने बेटियों के पक्ष में फैसले दिए हैं, लेकिन समाज में सोच इतनी जल्दी नहीं बदलती। अब हाल ही में हाईकोर्ट का एक ताजा फैसला सामने आया है, जिसने एक बार फिर इस मुद्दे को चर्चा में ला दिया है। इस फैसले के बाद एक बार फिर सवाल खड़ा हो गया है कि क्या बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबरी का हक मिलेगा या नहीं?
बेटियों के अधिकार की कहानी
हमारे समाज में बेटियों को आज भी बेटे जितना अधिकार नहीं मिलता, खासकर जब बात संपत्ति की हो। पुराने जमाने में तो बेटियों को शादी के बाद मान लिया जाता था कि अब वो ससुराल की हो गईं, पिता की संपत्ति पर उनका कोई हक नहीं है। लेकिन अब वक्त बदल रहा है और बेटियां भी अपने हक के लिए आवाज़ उठा रही हैं।
क्या कहा हाईकोर्ट ने?
हाईकोर्ट ने हाल ही में एक केस में साफ किया कि हर मामला अलग होता है और संपत्ति में बेटी का हक तभी बनता है जब सभी कानूनी शर्तें पूरी हों। कोर्ट ने कुछ मामलों में बेटियों को अधिकार नहीं मिलने की वजह भी गिनाई, जैसे कि अगर पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो चुकी है या वसीयत में उनका नाम शामिल नहीं है।
इससे ये साफ होता है कि हर बेटी को ऑटोमैटिक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा, बल्कि उसे कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा।
इस फैसले का समाज पर असर
अब इस फैसले से समाज में दो तरह की सोच बन गई है। एक तरफ कुछ लोग इसे सही मान रहे हैं कि कानून के मुताबिक जो नियम हैं, वही लागू होंगे। वहीं दूसरी तरफ बहुत से लोग इसे बेटियों के हक के खिलाफ मानते हैं। उनका कहना है कि बेटियों को बेटे जितना ही हक मिलना चाहिए, चाहे मामला कोई भी हो।
यह फैसला जरूर एक नया मोड़ लाता है लेकिन इसके बाद ये सवाल और ज़ोर पकड़ रहा है कि क्या भारत में वाकई बेटियों को समान अधिकार मिल पाएंगे?
कानून क्या कहता है?
2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में बदलाव हुआ था, जिसके तहत बेटियों को भी बेटे जितना ही अधिकार मिला। लेकिन ये नियम हर केस में लागू नहीं होता। अगर पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो या उन्होंने संपत्ति को लेकर अलग से वसीयत बनाई हो, तो बेटी का दावा कमज़ोर हो जाता है।
इसलिए जरूरी है कि बेटियों को भी कानूनी जानकारी हो और वो वक्त रहते अपने हक के लिए सही कदम उठा सकें।
आर्थिक और सामाजिक नजरिए से क्या है इसका असर
बेटियों को संपत्ति में अधिकार मिलने से उनकी आर्थिक हालत सुधर सकती है। इससे वो आत्मनिर्भर बन सकती हैं, अपनी जिंदगी के फैसले खुद ले सकती हैं और समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा मिल सकता है। लेकिन जब उन्हें उनका हक नहीं मिलता, तो ये ना सिर्फ उनके लिए नुकसानदायक होता है बल्कि समाज में असमानता भी बनी रहती है।
अगर बेटियों को संपत्ति का अधिकार मिले, तो वो न सिर्फ अपने लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उदाहरण बनेंगी।
परिवार के भीतर क्या बदलाव होंगे
अगर बेटियों को बराबरी का अधिकार मिले तो पारिवारिक रिश्तों में भी बदलाव आएगा। भाई-बहन के रिश्ते में बराबरी आएगी, माता-पिता बेटियों को भी बेटे जितना अहम मानेंगे और बेटियां भी शादी के बाद अपने मायके से पूरी तरह कट नहीं जाएंगी। इससे परिवार की सोच में भी धीरे-धीरे बदलाव आएगा।
भविष्य की दिशा
यह फैसला एक तरफ जहां कुछ बेटियों के हक पर सवाल खड़े करता है, वहीं दूसरी तरफ समाज को ये सोचने पर मजबूर भी करता है कि क्या वाकई हम बेटियों को वो दर्जा दे रहे हैं जिसकी वो हकदार हैं? अब जरूरत है कि कानून में और स्पष्टता हो, और बेटियों को भी उनके अधिकारों की जानकारी दी जाए।
बेटियों को संपत्ति में हक देने का मुद्दा सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक सोच से भी जुड़ा हुआ है। जब तक हम बेटियों को बेटे जितना सम्मान और अधिकार नहीं देंगे, तब तक असली समानता नहीं आएगी। हाईकोर्ट का ये फैसला भले ही एक कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा हो, लेकिन इससे समाज में एक नई चर्चा शुरू हुई है – और शायद यही चर्चा आगे जाकर बड़ा बदलाव लाए।